गीता - यात्रा
जीवन के हर अनुभव को ब्यक्त करना संभव नहीं ........
यात्रा वह सुख मय होती है ------
जिसका लक्ष्य तो स्थिर रहे ......
पर
मार्ग के चारों ओर का दृश्य हर पल बदलता रहे .....
और ऎसी यात्रा का ही .....
नाम है ......
गीता - यात्रा
भोग - संसार में हमारे पास धीरे - धीरे सब कुछ तो होता जाता है .....
लेकीन फिरभी ....
हम क्यों अतृप्त बनें रहते हैं , आखिर हमारी खोज किसकी है ?
जो हमें पूर्ण रूप से तृप्त करा दे ॥
हमारे रहस्य दर्शी कहते हैं ------
निर्वाण ही वह अनुभव है जो अब्य्क्तातीत है और
जिस अनुभव के बाद कुछ और की भूख नहीं रह पाती ।
निर्वाण वह स्थिति है जहां ......
निर्विकार मन - बुद्धि को
प्रभु की छाया के रूप में आत्मा बोध होता है ॥
जब मन - बुद्धि निर्विकार होते हैं ....
तब ....
जो उनके सामनें होता है ....
उसे ....
वे शब्दों में नहीं ढाल सकते ॥
===== यही अनुभूति परम अनुभूति है =======
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