मोह को समझो
मोह गीता का मुख्य बिषय है , अर्जुन के मोह को दूर करनें के लिए परम गीता-ज्ञान दिया तो आइये देखते हैं
गीता में मोह क्या है?
१- मोह , मन, मोहित और मोहन को जानों।
२- जो है वह जानें न पाये का भय , मोह है।
३- मोह, भय और आलस्य तामस गुन के तत्त्व हैं ।
४- हम मुट्ठी खोलना नहीं चाहते और बंद मुट्ठी में उसको लाना चाहते हैं जो मुट्ठी में नहीं है - यह कैसे सम्भव है ? हम बंद मुट्ठी को इस भय से खोलना नहीं चाहते की जो इसमें बंद है वह कहीं सरक न जाए और यही भय मोह है।
तुलसी का राम चरित मानस आप पढ़ते होंगे, राजा दशरथ मोह में अपना शरीर त्यागा और गीता श्लोक 14.15 कहता है किऐसे ब्यक्ति को कीट,पतंग या पशु कि योनी मिलती है तो क्या श्री राम के पिता को आगे इन योनिओं में से कोई एक योनी मिली होगी?---उत्तर आप को खोजना है ।
मोह कि पहचान
मोह कि पहचान को समझनें के लिए देखिये गीता श्लोक 1.27-1.30 तक को ।
अर्जुन कहते हैं ---हमारे शरीर में कम्पन हो रहा है , त्वचा जल रही है , गला सूख रहा है और मन भ्रमित हो रहा है।
गीता का कृष्ण एक सांख्य - योगी है और ऐसा योगी समत्व योगी होता है जो भावों से प्रभावित नहीं होता ।
अर्जुन कि चार बातें परम श्री कृष्ण के लिए पर्याप्त हैं यह समझनें के लिए कि अर्जुन कि भाव-दशा कैसी है?
अर्जुन अपनें सगे सम्बन्धियों को देखा कर भावुक हो उठते है हो सकता है उनमें से कुछ लोगों को काफी समय के बाद देखा हो और जब ऐसी स्थिति हो तो भावुक होना स्वाभाविक भी है ।
युद्ध्य में अर्जुन को मोह ग्रसित होना सांख्य योग कि दृष्टि में एक जटिल समस्या है , जब अर्जुन मोह से मुक्त होंगे
तब वे राजस गुन के प्रभाव में आजायेंगे जो तामस-गुन से भी खतरनाक होगा क्योंकि गीता श्लोक 14.10 कहता है-
जब तामस गुन नीचे होता है तब राजस ऊपर उठाता है और जब शात्वीक गुन ऊपर उठाता है तब राजस नीचे जाता
है । महाभारत कि कहानियां हमारे मनोरंजन का माध्यम बन गयी हैं लेकिन यह युद्ध परम श्री कृष्ण का एक
सांख्य-योग का प्रयोग था कि एक तामस गुन धारी को किस तरह से सीधे सात्विक गुन में लाया जाए ? बात अभी
समाप्त नहीं होती परम अर्जुन को गुनातीत बना कर युद्ध में उतारना चाहते हैं । एक गुनातीत और युद्ध सुननें में
तो अजीब सा लगता है पर है सत्य ।
मोह में अंहकार अति सूक्ष्म रूप में अंदर छिपा होता है जिसको बाहर से देखना कठिन होता है और कामना में
यह बाहर होता है जिसको आसानी से समझा जा सकता है ।
मोह ग्रसित ब्यक्ति सहारा चाहता है और जब उसका सहारा टूटता दीखता है तब वह ब्याकुल हो उठता है ।
आगे के अंक में आप अर्जुन के सहारे को टूटते देखेंगे तब आप को पता चलेगा कि मोह ग्रसित ब्यक्ति कि मनोदशा
कितनी अस्थिर होती है।
=====ॐ========
गीता में मोह क्या है?
१- मोह , मन, मोहित और मोहन को जानों।
२- जो है वह जानें न पाये का भय , मोह है।
३- मोह, भय और आलस्य तामस गुन के तत्त्व हैं ।
४- हम मुट्ठी खोलना नहीं चाहते और बंद मुट्ठी में उसको लाना चाहते हैं जो मुट्ठी में नहीं है - यह कैसे सम्भव है ? हम बंद मुट्ठी को इस भय से खोलना नहीं चाहते की जो इसमें बंद है वह कहीं सरक न जाए और यही भय मोह है।
तुलसी का राम चरित मानस आप पढ़ते होंगे, राजा दशरथ मोह में अपना शरीर त्यागा और गीता श्लोक 14.15 कहता है किऐसे ब्यक्ति को कीट,पतंग या पशु कि योनी मिलती है तो क्या श्री राम के पिता को आगे इन योनिओं में से कोई एक योनी मिली होगी?---उत्तर आप को खोजना है ।
मोह कि पहचान
मोह कि पहचान को समझनें के लिए देखिये गीता श्लोक 1.27-1.30 तक को ।
अर्जुन कहते हैं ---हमारे शरीर में कम्पन हो रहा है , त्वचा जल रही है , गला सूख रहा है और मन भ्रमित हो रहा है।
गीता का कृष्ण एक सांख्य - योगी है और ऐसा योगी समत्व योगी होता है जो भावों से प्रभावित नहीं होता ।
अर्जुन कि चार बातें परम श्री कृष्ण के लिए पर्याप्त हैं यह समझनें के लिए कि अर्जुन कि भाव-दशा कैसी है?
अर्जुन अपनें सगे सम्बन्धियों को देखा कर भावुक हो उठते है हो सकता है उनमें से कुछ लोगों को काफी समय के बाद देखा हो और जब ऐसी स्थिति हो तो भावुक होना स्वाभाविक भी है ।
युद्ध्य में अर्जुन को मोह ग्रसित होना सांख्य योग कि दृष्टि में एक जटिल समस्या है , जब अर्जुन मोह से मुक्त होंगे
तब वे राजस गुन के प्रभाव में आजायेंगे जो तामस-गुन से भी खतरनाक होगा क्योंकि गीता श्लोक 14.10 कहता है-
जब तामस गुन नीचे होता है तब राजस ऊपर उठाता है और जब शात्वीक गुन ऊपर उठाता है तब राजस नीचे जाता
है । महाभारत कि कहानियां हमारे मनोरंजन का माध्यम बन गयी हैं लेकिन यह युद्ध परम श्री कृष्ण का एक
सांख्य-योग का प्रयोग था कि एक तामस गुन धारी को किस तरह से सीधे सात्विक गुन में लाया जाए ? बात अभी
समाप्त नहीं होती परम अर्जुन को गुनातीत बना कर युद्ध में उतारना चाहते हैं । एक गुनातीत और युद्ध सुननें में
तो अजीब सा लगता है पर है सत्य ।
मोह में अंहकार अति सूक्ष्म रूप में अंदर छिपा होता है जिसको बाहर से देखना कठिन होता है और कामना में
यह बाहर होता है जिसको आसानी से समझा जा सकता है ।
मोह ग्रसित ब्यक्ति सहारा चाहता है और जब उसका सहारा टूटता दीखता है तब वह ब्याकुल हो उठता है ।
आगे के अंक में आप अर्जुन के सहारे को टूटते देखेंगे तब आप को पता चलेगा कि मोह ग्रसित ब्यक्ति कि मनोदशा
कितनी अस्थिर होती है।
=====ॐ========
Comments