स्वभाव क्या है ?

यहाँ हमें गीता के इन श्लोकों को देखना चाहिए ------
2.45,3.27,3.33, 14.19,14.23,18.59,18.60 , 8.3
जब हम इन श्लोकों को अच्छी तरह से देखते हैं तब हमें गीता यह देता है ..........
स्वभाव दो तरह का होता है; एक परिवर्तनशील स्वभाव है और दूसरा स्थाई ।
अस्थाई स्वभाव हमारे अंदर के गुन समीकरण से बनताहै , गुन-समीकरण हर पल बदलता रहता है ।
अस्थाई स्वभाव से कर्म होते हैं और ऐसे कर्म भोग कर्म होते हैं ।
भोग कर्मों में भोग-तत्वों के प्रति होश बनाना ही कर्म योग है ।
होश बन जानें के बाद भोग-कर्म योग कर्म में बदल जाते हैं और तब हमें--------
अपना मूल स्वभाव मिलता है जिसको गीता अध्यात्म कहता है [8.3 ] ।
संसार से अपनें केन्द्र - ब्रह्म तक पहुँचना तब संभव है जब हमको अपना मूल स्वभाव मिल जाता है ।
आज से हमें अपनें मूल स्वभाव को खोजना है वह भी गीता के माध्यम से ।
====ॐ=====

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है