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सांख्य दर्शन की 72 कारिकाओं में ऐसा कौन सा अमृत छिपा है जिसे किसी न किसी रूप में अन्य दर्शन उपयोग करते हैं

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शांख्य दर्शन अन्य दर्शनों से अधिक प्राचीन है , इसमें कोई संदेह नहीं । वेदांत दर्शन का प्रचार - प्रसार सांख्य को लगभग समाप्त ही कर दिया लेकिन सत्य को निर्मूल करना असंभव है । सांख्य कारिका : 3 और 22 में सर्ग उत्पत्ति रहस्य का जो संक्षिप्त विवरण दिया गया है उसे भागवत पुराण में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और स्वयं कृष्ण द्वारा भी प्रस्तुत किया गया है । भागवत में कृष्ण द्वारा कहा गया सांख्य योग पर एक पूरा अध्याय भी है लेकिन यह सांख्य वेदांत दर्शन को प्रतिविम्वित करता है । आइये ! देखते हैं सांख्य दर्शन की 72 जरिकाओं में छिपे उस अमृत कलश को जिसकी एक बूँद के लिए सभीं अभिलाषी हैं

सांख्य में 14 प्रकार की और भागवत में 43 प्रकार की सृष्टियाँ

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सांख्य दर्शन में 14 प्रकार प्रकार की लिङ्ग सृष्टियाँ पिछले अंक में देखी गयी और अब देखिये भागवत पुराण में 43 प्रकार की लिङ्ग सृष्टि । ध्यान रहे कि बिना भाव सृष्टि लिङ्ग सृष्टि का होना संभव नहीं और बिना लिङ्ग सृष्टि भाव सृष्टि का ब्यक्त होना संभव नहीं । बुद्धि से तीन अहंकारों की उत्पत्ति है और सात्त्विक अहँकार से से 11 इन्द्रियां तथा तामस अहँकार से पांच तन्मात्र उत्पन्न हुए हैं और तन्मात्रों से महाभूत हैं । महाभूतों से स्थूल देह का निर्माण हुआ है। इस प्रकार सृष्टि रहस्य में भाव और लिङ्ग दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । ~~●● ॐ ●●~~

सांख्य दर्शन में भाव - सृष्टियाँ क्या है ?

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सांख्य दर्शन में भाव - लिङ्ग सृष्टियाँ

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दोनों एक दूसरी की पूरक हैं

भक्ति की पराकाष्ठा

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