गीता में दो पल - 19

1- भागवत : 4.22 > धन एवं बिषयका चिंतन पुरुषार्थका नाशक है और ज्ञान - विज्ञानसे दूर रखता
है ।
2 - भागवत : 2.1 > एक घडी ज्ञान भरा जीवन
भोग भरे 200 सालके जीवनसे अधिक प्रीतिकर
होता है ।
3- भागवत : 3.36 > साधनसे भक्ति ,भक्तिमें वैराग्य और वैराग्यसे ज्ञानकी प्राप्ति होती है ।
4- भागवत : 2.1 > वैराग्य अर्थात गुण तत्त्वों के सम्मोहन से परे का जीवन ।
5- भागवत : 6.5 > बिना भोग अनुभव वैराग्य में पहुँचना कठिन है ।
6- भागवत : 11.19 > ज्ञान : प्रकृति , पुरुष , अहंकार , महतत्त्व , 11 इन्द्रियाँ ,5 तन्मात्र , 5 महाभूत आदि को समझना ज्ञान है और इन सबके होनें का कारण ब्रह्म है ,ऐसी समझ विज्ञान है ।
7- गीता : 13.2 : क्षेत्र - क्षेत्रज्ञका बोध ज्ञान है ।
8- गीता : 4.38 > कर्म -योगसे ज्ञानकी प्राप्ति होती
है ।
9- गीता : 4.10 : ज्ञान वह जो प्रभु में बसेरा बनाए । 10 - गीता : 7.19 > कई जन्मोंकी तपस्याका फल है ज्ञान प्राप्ति ।
11- गीता : 7.3 > हजारों लोग ध्यान करते हैं ,उनमें एकाध सिद्धि प्राप्ति करते हैं और सिद्धि प्राप्त लोगों में कोई एक तत्त्व ग्यानी होता है ।
12- गीता - 7 16 > चार प्रकार के लोग हैं : -----
12.1: आर्त : जो संकट निवारण हेतु प्रभुको याद करते हैं ।
12.2: # जिज्ञासु : जो प्रभुको यथार्थ रूप में समझना चाहते हैं ।
12.3:  अर्थार्थी : जो लोग भोग प्राप्ति हेतु प्रभुको याद करते हैं ।
12.4: ज्ञानी : वह जो बिना कारण प्रभु में बसे रहना चाहते हैं ।
13- गीता : 5.16 > ज्ञानसे अज्ञानका अंत होता है और ज्ञान ज्योति ही परम प्रकाश है ।
14- गीता : 5.17 - 5.18 > तन मन एवं बुद्धि से निर्विकार समभाव ब्यक्ति ग्यानी - पंडित होता है ।
15- गीता : 6.8 > नियंत्रित इन्द्रियों वाला ज्ञान - विज्ञानसे परिपूर्ण होता है ।
~~~ ॐ ~~~

Comments

Popular posts from this blog

क्या सिद्ध योगी को खोजना पड़ता है ?

पराभक्ति एक माध्यम है

मन मित्र एवं शत्रु दोनों है