गीता में दो पल - 17 अहंकार - 1
# अहंकार क्या है ? #
*भागवत : 3.26 में कपिल मुनि द्वारा दी गयी अंतः करणकी परिभाषाको हम पहले देख चुके हैं । कपिल कहते हैं -- बुद्धि ,अहंकार , मन और चित्तको मिला कर अतः करण बनता है ।
* अंतः करणके एक तत्त्व बुद्धिको हम गीता के माध्यम से देख चुके हैं और अब देखते हैं दूसरे तत्त्व अहंकारको ।
<> अहंकारके प्रभावमें मैं और मेराका भाव हर पल मनुष्यमें गूंजता रहता है ।
<>अहंकारको समझनेंके लिए यहाँ हम दो सन्दर्भोंको देखनें जा रहे हैं --
<> 1 : भागवत में ब्रह्मा ,मैत्रेय ,कपिल और प्रभु कृष्णके तत्त्व -ज्ञान और ---
<> 2 : दशांगुल न्यायके माध्यमसे अहंकरके आकरको भी समझते हैं ।
<> 1: भागवत : 2.4+2.5+3.5+4.6+3.26+11.24 में 230 श्लोकों में ब्रह्मा ,मैत्रेय , कपिल और प्रभु कृष्ण के तत्व -ज्ञान से हमें निम्न सार मिलता है ।
1.1: माया पर कालका प्रभाव महत्तत्त्व की उत्पत्ति करता
है ।
1.2: महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों की उत्पत्ति करता है ।
1.3: सात्विक अहंकार से मन ,राजसअहंकार से प्राण , बुद्धि और इन्द्रियों की उत्पत्ति होती है।
1.4: तामस अहंकार पर कालके प्रभाव में पांच तन्मात्र और पांच महाभूतों की रचना होती है।
<> सृष्टिके होनें में तीन अहंकारोंकी भूमिका अहम् है ।
*अगले अंक में दशांगुल न्यायके माध्यम से अहंकार के आकार को समझेगें ।
~~~ॐ ~~~
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