गीता में दो पल - 10 (शब्द से सृष्टि )
तत्त्व - ज्ञान
" In the beginning was the word , and the word was with God , and the word was God . "
~~ John 1:1 > First verse in the Gospel ~~
** प्रारंभ में शब्द था ,
** शब्द प्रभु के साथ था ,
** शब्द ही प्रभु था ।
<> गोस्पेलके माध्यम से क्या कहना चाह रहे हैं ?
# अब देखते हैं भागवत क्या कह रहा है ?
## भागवत में इस सम्बन्ध में ब्रह्मा , मैत्रेयऋषि , कपिल मुनि और प्रभु कृष्ण क्रमशः स्कन्ध - 2 , 3 , 3 और 11 में निम्न बात कहते हैं ।
## : तीन गुणों की माया से काल के प्रभाव में पहले महत्तत्व की उत्पत्ति होती है ।
** : महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों को पैदा करता है ।
# : सात्विक अहंकार से मन की उत्पत्ति है ।
* : राजस अहंकार से इन्द्रियाँ और बुद्धि उपजती हैं ।
** : तामस अहंकार से शब्द की उत्पत्ति है
और :---
शब्द से अन्य चार तन्मात्र ( स्पर्श, रूप , रस और गंध ) एवं उनके अपनें -अपनें महाभूतों जैसे आकाश , वायु , तेज , जल और पृथ्वी की रचना होती है ।
शब्दसे निराकार उर्जा साकार रूप में दृश्य के रूप में अब्यक्त से ब्यक्त होती है ।
अब्यक्त ,ब्यक्त के होनें का कारण है ।
~~ ॐ ~~
Comments
I read posts on your blog and found it very nice. I am quite interested to know more about 'Sankhya Yog'. I dont find much details about Sankhya Yog on the internet. But I think you have covered it in your posts sometimes. Can you please answer my few questions about sankhya yog
1. What is sankhya yog exactly according to Gita?
2. What are characteristics of a sankhya yogi. What do they think?
3. Is sankhya yog related to science and research. (something like 'tarka shastra')?
4. Is it same as 'sankhya darshan' written by Kapil Muni in ancient time? If not what is the difference.
5. How to observe Sankya yog in modern time and life?
6. Where can I find more readings/books about Sankhya Yog.
Thank you for writing this blog. Your posts are very helpful.
Regards,
Subhash