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गीता में दो पल - 11

योग क्या है ?   # गीता श्लोक : 6.23 # ** यहाँ प्रभु कह रहे हैं :--- " दुःख संयोग वियोगं , योग सज्ज्ञितम् " भावार्थ दुःख के कारणों से वियोग होना ,योग है । <> अब देखना होगा , दुःखके कारण क्या - क्या हैं ? # चाह और अहंकार , दुःखके मूल कारण हैं । *अब सोचना है की चाह -अहंकार रहित जीवन कैसे हो ? <> इस प्रकार की स्थिति कुछ करनें से नहीं आ सकती अपितु जो हो रहा है ,वह गुणों की उर्जा से हो रहा है ,ऐसा समझनेंका अभ्यास कर्ताभाव के अहंकार से मुक्त करता है और धीरे -धीरे गुण साधना जब पकती है तब दुःख के सभीं कारणों जैसे आसक्ति ,काम ,कामना ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,भय ,आलस्य और अहंकार से मुक्त स्थिति मिलती है जिसको कहते हैं :--- सुख संयोग वियोगः इति योगः ~~ ॐ ~~

गीता में दो पल - 10 (शब्द से सृष्टि )

तत्त्व - ज्ञान   " In the beginning was the word , and the word was with God , and the word was God . "   ~~ John 1:1 > First verse in the Gospel ~~  ** प्रारंभ में शब्द था ,   ** शब्द प्रभु के साथ था ,  ** शब्द ही प्रभु था ।  <> गोस्पेलके माध्यम से क्या कहना चाह रहे हैं ?   # अब देखते हैं भागवत क्या कह रहा है ?  ## भागवत में इस सम्बन्ध में ब्रह्मा , मैत्रेयऋषि , कपिल मुनि और प्रभु कृष्ण क्रमशः स्कन्ध - 2 , 3 , 3 और 11 में निम्न बात कहते हैं ।  ## : तीन गुणों की माया से काल के प्रभाव में पहले महत्तत्व की उत्पत्ति होती है ।  ** : महत्तत्त्व पर काल का प्रभाव तीन प्रकार के अहंकारों को पैदा करता है ।  # : सात्विक अहंकार से मन की उत्पत्ति है ।  * : राजस अहंकार से इन्द्रियाँ और बुद्धि उपजती हैं ।   ** : तामस अहंकार से शब्द की उत्पत्ति है   और :---  शब्द से अन्य चार तन्मात्र ( स्पर्श, रूप , रस और गंध ) एवं उनके अपनें -अपनें महाभूतों जैसे आकाश , वायु , तेज , जल और पृथ्वी की रचना होती है । शब्दसे निराकार उर्जा साकार रूप में दृश्य के रूप में अब्यक्त से ब्यक्त होती है । अब्यक्त