गीता में प्रभु के वचन

<> आसक्ति भाग - 04 <> 
● यहाँ गीताके कुछ चुने हुए सूत्रों को लिया जा रहा है जिनका सीधा सम्वन्ध आसक्ति से है ।
 1-गीता - 2.48 > आसक्ति रहित कर्म , समत्व योग है । 
2-गीता -3.19+3.20 > अनासक्त कर्म प्रभुका द्वार खोलता है । 
3-गीता - 4.22 > समत्व योगी कर्म -बंधन मुक्त होता है । 4- गीता - 5.10 > आसक्ति रहित कर्म करनें वाला भोग संसार में कमलवत रहता है । 
5-गीता - 18.23 > आसक्ति , राग और द्वेष रहित कर्म , सात्विक कर्म होते हैं । 
6- गीता - 18.49 > अनासक्त कर्म से नैष्कर्म्य की सिद्धि मिलती है ।
 7- गीता - 18.50 > नैष्कर्म्य की सिद्धि ज्ञान योग की परानिष्ठा है । 
8- गीता - 2.62 > मन द्वारा बिषयों का मनन उस बिषय के प्रति आसक्ति पैदा करता है । 
9-गीता - 3.34 > सभीं बिषयों में राग -द्वेष की उर्जा होती
 है । 
10-गीता - 2.56 + 4.10 > राग ,भय और क्रोध रहित ज्ञानी होता है । 
<> आसक्ति इन्द्रिय , बिषय और मन ध्यान की पहली रुकावट है <> <> कर्मयोग - साधना में आसक्ति की साधना पहली साधना है । 
<> आसक्ति की साधना जब पकती है तब योग घटित होता है । <> योग प्रभु में बसाता है ।। 
~~ हरे कृष्ण ~~

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