गीता को ढोना अति सरल पर -----

  • गीता को ढोना तो अति सरल है लेकिन गीता में उतरना उतना ही कठिन

  • गीता में वे उतरते हैं जिनके माद एक मजबूत ह्रदय है

  • गीता में वे उतरते हैं जिनकी आस्था अडिग है

  • गीता उनका साथ देता है जो अपनें को देखना चाहते हैं

गीता एक दर्पण है जिस पर आप स्वयं की स्थिति को देख सकते हैं

गीता - यात्रा में बिषय से वैराज्ञ से ठीक पहले तक की यात्रा भोग की यात्रा है

जहाँ-----

  • भोग तत्त्वों के रस को चखा जाता है …...

  • भोग तत्त्वों के रस को परखा जाता है …..

  • भोग तत्त्वों के प्रति बोध बनाना होता है ….

और

यह बोध ही आगे चल कर वैराज्ञ में ज्ञान का रूप ले लेता है ,

जहाँ …..

आसक्ति,कामना,क्रोध,लोभ,मोह,भय,आलस्य एवं अहँकार का द्रष्टा बना हुआ वैरागी …..

अपनें कर्म में अकर्म देखता है-----

अपनें अकर्म में कर्म देखता है-----

संसार में प्रकृति-पुरुष के खेल को देखता है ….

और …..

वह योगी आत्मा से आत्मा तृप्त रहता हुआ परम गति की ओर चलता रहता है //

====ओम्=======



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