गीता की कुछ अमृत बूँदें
आप को गीता कैसे पढ़ना है इस बात को स्पष्ट करनें के लिए कुछ गीता के श्लोकों को मिला कर कुछ समीकरण तैयार किए जा रहें हैं जिनसे गीता-रहस्य को समझनें में आसानी हो सके । आप से प्रार्थना है की आप गीता में अपनें जीवन की समस्याओं का हल खोजे और ऐसा करनें के लिए आप को गीता में तैरना पडेगा । आइये! अब हम गीता की कुछ अमृत बूंदों को देखते हैं।
श्लोक 2.52 15.3 7.14
मोह के साथ वैराग्य नहीं, वैराग्य बिना संसार का बोध नहीं , संसार बोध बिना मायामुक्त होना सम्भव नहीं और बिना मायामुक्त हुए परमात्मा -बोध संभव नहीं ।
श्लोक 3.38 7.20 18.73 3.40 3.37
काम , कामना एवं मोह अज्ञान- की जननी हैं। काम का सम्मोहन बुद्धि तक होता है। काम-कामना राजस गुन के तत्त्व हैं और मोह तामस गुन का तत्त्व है ।
श्लोक 3.33 18.59 18.60 3.5
स्वभाव से कर्म होता है और स्वभाव मनुष्य के अंदर स्थित गुन-समीकरण का फल होता है ।
श्लोक 3.27 2.14 2.45 5.22 18.38
कर्म करता गुन हैं , अज्ञान- जनित करता-भाव अंहकार की छाया है । गुणों के प्रभाव मन जो कर्म होते हैं वे सभी भोग कर्म होते हैं । भोग कर्मों के सुख में दुःख का बीज होता है ।
श्लोक 2.52 15.3 7.14
मोह के साथ वैराग्य नहीं, वैराग्य बिना संसार का बोध नहीं , संसार बोध बिना मायामुक्त होना सम्भव नहीं और बिना मायामुक्त हुए परमात्मा -बोध संभव नहीं ।
श्लोक 3.38 7.20 18.73 3.40 3.37
काम , कामना एवं मोह अज्ञान- की जननी हैं। काम का सम्मोहन बुद्धि तक होता है। काम-कामना राजस गुन के तत्त्व हैं और मोह तामस गुन का तत्त्व है ।
श्लोक 3.33 18.59 18.60 3.5
स्वभाव से कर्म होता है और स्वभाव मनुष्य के अंदर स्थित गुन-समीकरण का फल होता है ।
श्लोक 3.27 2.14 2.45 5.22 18.38
कर्म करता गुन हैं , अज्ञान- जनित करता-भाव अंहकार की छाया है । गुणों के प्रभाव मन जो कर्म होते हैं वे सभी भोग कर्म होते हैं । भोग कर्मों के सुख में दुःख का बीज होता है ।
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