कामना और गुण

कामना राजस गुण का तत्व है और राजस गुण परम-राह का सबसे मजबूत अवरोध है[गीता-6।27]

दो साधू नदी किनारे बैठेaataahcnuh थे उनमें से एक नें एक काला कम्बल अपनी तरफ़ आते देखा और ज्योंही कम्बल नजदीक आया उसनें उसे झटसे पकड़ लिया। दूसरा साधू सारी घटनाओं को देख रहा था। कुछ समय गुजर गया पर उसका साथी कम्बल को पकडे नदी में धुका रहा तब उसनें बोला भाई! जा पकड़ ही लिया है तो उसे बाहर क्यों नहीं खीचलेता क्यों नदीमें झुका पडा है? दोस्त बोला मैं क्या करू? यह तो हमें अपनी ओरखीच रहा है बात कुछ समझ के बाहर की दिख रही थी, वास्तव में वह कम्बल नहीं रीछ था। कामना कम्बल की तरह दिखती तो है लेकिन होती रीछ जैसी है , कामना कही से आती नही , यह बिषय - इन्द्रिय संयोग
से उपजी आशक्ति ऊर्जा से उत्पन्न होती है और क्रोध इसका रूपांतरण है [गीता- 2।62-2।63 ]
गीता गुण - समीकरण को जिसनें समझ लिया वह भोग तत्वों के सम्मोहन से बच सकता है और जब ऐसा संभव होता है तब समझो भाग्यशाली हो , तुम में परमात्मा -किरण पड़ चुकी है। गीता-सूत्र 14 . 10 को आप ठीक से समझो, सूत्र कहता है -----
मनुष्य में तीन गुण हर पल होते हैं , उनकी मात्राएँ अलग अलग होती हैं। जब एक गुण प्रभावी होता है तब अन्य दो गुण मंद पड़ जाते हैं और गुणों का ऊपर नीचे होना लगा होता है। प्रकृति से हम जो कुछ भी ग्रहण करते हैं उनसे हमारे अंदर का गुण-समीकरण बदल जाता है। हवा, पानी, भोजन, विचार, रहन-सहन एवं ब्योहार से हमारा गुण- समीकरण प्रभावित होता है अतः हमें इनके प्रति हर पल होश में होना चाहिए।
गीता का मूल मन्त्र -- सीधा मन्त्र है -----
सात्विक गुण से हम परमात्मा की ओर अपना रुख करते हैं, राजस गुण से हमारा रुख भोग की ओर होता है और तामस गुण इन दोनों गुणों में रुकावट डालता है , न सत की ओर हम जा सकते हैं न भोग की ओर क्योंकि हम भय में होते हैं।
भोग में जब भय न हो तो वह अपनी सीमा पार करवाकर योग में ले जाता है ।
कामना दुस्पुर है लेकिन गुन साधना से कामना को समझा जा सकता है ।
=====ॐ=======

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