गीता में दो पल - 12
* असुर और योगी में क्या फर्क है ? * असुर वैर - भाव के आधार पर जिस गति को प्राप्त करता है , उस गति को भक्त प्यार से प्राप्त जार लेता है । * असुर प्रभुको अपनें अधीन रखनें हेतु तप करता है और योगी ,प्रभुका गुलाम बनें रहनें केलिए तप करता है । * असुरकी तपस्या सम्राट बननेंके लिए होती है और भक्तकी तपस्या गुलाम बनें रहनेंके लिए होती है । * अपना -अपना का जाप करते - करते मनुष्य स्वयं पराया बन जाता है - इसे कहते हैं , प्रभु की माया । * प्रभु का भक्त माया का द्रष्टा होता है और असुर माया का गुलाम । ~~~ ॐ ~~~