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कर्म से कृष्णमय कैसे हों ?

● कर्म से कृष्णमय कैसे हों ? 1- जो तुम्हारा कर्म है उसमें कर्म बंधनोंको समझो । 2- कर्म - बंधन वे तत्त्व हैं जो कर्म करनेंकी प्रेणना देते हैं । 3- कर्मका सम्बन्ध जबतक भोगसे हैं तबतक कर्म - बंधन होंगे (आसक्ति ,कामना ,क्रोध ,लोभ ,मोह , भय ,आलस्य और अहंकार ) । 4- जब कर्म कर रहे ब्यक्ति का कर्म ऊपर वताये गए भोग - तत्त्वों से प्रभावित नहीं होता तब वह कर्म , योग बन जाता है । 5 - कर्म - योगमें रहनें का अभ्यास योग सिद्धि में पहुंचाता है । 6 - योग सिद्धि से ज्ञानकी प्राप्ति होती है । 7- ज्ञान से वैराज्ञ मिलता है जहां भोग कर्म अकर्म सा दिखता है और भोग-अकर्म ,कर्म सा दिखता है । 8 - ज्ञानसे कर्म संन्यासमें कदम पड़ते हैं । 9 - कर्म संन्यासी ही योगी होता है । 10 - योगी की पीठ भोग की ओर और ऑंखें परमात्मा पर टिकी होती हैं । 11 - या निशा सर्व भूतानां , तस्यां जागर्ति संयमी । यस्यां जाग्रति भूतानि , सा निशा पश्यतः मुने : ।। ** यहाँ आप देखें :--- गीता : 2.69 + 4.18 + 4.37 + 4.38 4.41 + 6.1-6.5 तक ~~~ ॐ ~~~

प्रलय की तस्बीर

● प्रलयके प्रकार ● °° सन्दर्भ : भागवत : 3.11+ 11.4 + 12.4 °° ** प्रलय चार प्रकारकी हैं :--- 1- नैमित्तिक प्रलय : यह प्रलय 4.2 billion वर्षों के बाद होती है ।यह अवधि 1000 x ( चार युगोंकी अवधी ) के बराबर होती है ।इस प्रलयके बाद इतनें और समय तक कोई सृष्टि नहीं होती सर्वत्र अँधेरा और जल होता है ।गीता अध्याय - 8 सूत्र 16-20 तक में ऐसी स्थितिको ब्यक्त किया गया है ।एक कल्पमें 14 मनु होते हैं और एक मनुका समय होता है 71.6/14x चार युगों की अवधि । 2- प्राकृतिक प्रलय : इस प्रलयको भागवत : 11.3 में देखा जा सकता । इस प्रलयमें प्रकृति की कोई सूचना तो होती ही नहीं यहाँ तक कि सूक्ष्म मूल तत्त्व जैसे महत्तत्त्व ,अहंकार , 05 तन्मात्र (बिषय ) भी अपनें मूल प्रकृतिमें समा जाते हैं । * वायु पृथ्वीके गंधको लेलेती है और पृथ्वी जलमें बदल जाती है । *जलका रस वायु चूस लेती है और जल अग्नि में बदल जाता है । * अन्धकार अग्निका रूप लेलेता है और अग्नि वायीमें बदल जाती है । * आकाश वायुसे स्पर्श लेलेता है और वायु आकाश में समा जाती है । * आकाशसे शब्द काल लेलेता है और आकाश तामस अहंकारमें बदल जाता है । * इस प्रक