सांख्य योग से सत्य की ओर
भारत में हमारे बुद्धिजीवी [ ऋषि - मुनि ] उसकी तलाश के नये - नये मार्ग तलाशे जिसे आज के कण वैज्ञानिक प्रयोग शाला में तलाश रहे हैं / भारत प्रभु को केन्द्र मान कर मनुष्यों की दो श्रेणियाँ बनायी - आस्तिक और नास्तिक / आस्तिक श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं जो ब्रह्माण्ड के होनें और ब्रह्माण्ड की सभीं सूचनाओं के होनें का कारण एक शक्ति को मानते हैं जिसे परमात्मा कहते हैं /नास्तिक वर्ग के लोगों में परमात्मा के होनें की सोच नहीं होती , उनकी सोच ठीक वैसी होती है जैसी सोच आज के वैज्ञानिकों की है / वैज्ञानिक समुदाय पिछले तीन सौ साल से दो भागों में बता हुआ दिखता है ; एक वर्ग परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकारता है लेकिन उसे कर्ता रूप में न देख कर एक नियम के रूप में देखता है जैसे आइन्स्टाइन और दूसरा वर्ग पूर्ण रूपेण नास्तिक वर्ग है / आस्तिक वर्ग में न्याय , सांख्य , वैशेषिक , योग , पूर्व मिमांस , वेदान्त - ये 06 मार्ग विकशित हुए लेकिन धीरे - धीरे इनमें बदलाव आता गया / न्याय और सांख्य दोनों मार्गों को मिला दिया गया और सांख्य भी धीरे - धीरे लुप्त होता चला गया / भागवत की रचना द्वापर के अंत की है , भागवत