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Showing posts from November, 2011

पराभक्ति एक माध्यम है

गीता में परा भक्ति क्या है ? According to Gita what is steadfast devotion ? गीता में परा भक्ति एवं परा भक्त को ठीक से समझनें के लिए अप निम्न सूत्रों को देख सकते हैं :--10.7 , 6.15, 6.19 ,8.8 ,12.6, 12.7, 18.54 -18.55 ,6.30 ,13.29 ,15.18 -15.19 ,14.26 ,18.68 आगे चल कर गीता के इन सूत्रों को अलग – अलग से देखा जाएगा अभीं इन सभी सूत्रों के भाव को समझते हैं [ We shall be going through all these sutras later on but here we are going to touch the essence of these sutras ] गीता में गीता के शब्दों के भाव को खोजना गीता की साधना बन जाता है और गीता के शब्दों का परम्परागत अर्थ लगा कर बैठ जाना ऐसे हैं जैसे किसी मुर्दा के ऊपर गीता - पुस्तक को रख देना / इतनी बात याद रखना , गीता आप की आत्मा को दिशा देता है , आत्मा में जो उर्जा है उसे गीता दिखाता है और ऐसे पवित्र आयाम को जब हम अपना गुलाम बना लेना चाहते तब यह आयाम हमारा गुलाम तो नहीं बन पाता पर हमसे काफी दूर जरुर हो जाता है / परा - अपरा , निराकार – साकार , निश्चयात्मक – अनिश्चयात्मक , अविकल्प – सविकल्प , स्वर्ग – नर्क और परम धाम ऐस

मन के प्रति होशमय रहो

गीता सूत्र – 6.26 अभ्यास – योग यतः यतः निश्चलति मनः चंचलम् अस्थिरम् ततः ततः नियम्य एतत् आत्मनि एव बशम् नयेत् स्वामी प्रभुपाद जी इस सूत्र को कुछ इस प्रकार से देखते हैं ------ मन अपनीं चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहां कहीं भी विचरण करता हो , मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपनें बश में लाये // Dr Sarvapalli Radhakrishanan has seen this sutra as under ---- Whatsoever makes the wavering and unsteady mind wander away let him restrain and bing it back to the control of the Self alone . बुद्ध – महाबीर से J Krishnamurthy तक , शिव ध्यान सूत्रों से पतंजलि तक और आज के दर्शन शास्त्रियों के द्वारा जताए गए साधना विधियों का एक मात्र उद्देश्य है , मन को शांत करना और यह काम बहुत कठिन काम है / गीता में प्रभु श्री कृष्ण कहते हैं , अनेक लोग मेरी तरफ चलते हैं , उनमें से कुछ की साधना सिद्ध भी हो जाती है और जितनों की साधनाएं सिद्ध होती हैं उनमें से एकाध ही मुझे तत्त्व से समझ पाता है / साधना करना सबके बश में है , साधना की सिद्धि प्राप्त करना

मन ध्यान एवं देह

गीता सूत्र – 6.18 यदा विनियतं चित्तं आत्मनि एव अवतिष्ठते नि : स्पृह : सर्व कामेभ्य : युक्तः इति उच्यते तदा स्थिर चित्त वाला सभी प्रकार के भोगों की आसक्ति से दूर रहता है / serenity of mind keeps away from the attachments गीता सूत्र – 6.19 यथा दीपो निवात – स्थ : न इन्गते सा उपमा स्मृता योगिनः यत – चित्तस्य युज्जतः योगं आत्मनः योगारूढ़ स्थिति में मन ऐसे शांत रहता है जैसे वायु रहित स्थान में रखे दीपक की ज्योति स्थिर रहती है // as a lamp in a windless place flickers not , to such is likened the yogi of subdued thought who practises union with the Self . गीता सूत्र – 14.11 सर्वद्वारेषु देहे अस्मिन् प्रकाशः उपजायते ज्ञानं यदा तदा विद्यात् विवृद्धम् सत्त्वं इति उत सात्त्विक गुण की ऊर्जा देह के सभी नौ द्वारों को प्रकाशित कर देती है the energy of goodness mode brings all the organs and senses of the body in awareness गीता के तीन सूत्रों को एक साथ दिया गया और उनके भावों को भी दिखाया गया , गीता यहाँ कह रहा है , ध्यान से मन शांत होता

समय चक्र

टाइम – स्पेस रहस्य भाग – 02 ऋग्वेद कहता है … ...... वह धडकनें लगा [ It started pulsating ] और इस धडकन से सब कुछ जो है , जो हो रहा है और जो आगे होगा हो रहा है और हो - हो कर इसी में अब्यक्त भी हो रहा है // कौन है वह , ऋग्वेद के ऋषि का ? और विज्ञान कहता है … .... . आज से लगभग 14.7 billion साल पूर्व में अंतरिक्ष में कहीं एक 100 million light years क्षेत्रफल का hydrogen – atom बना और स्वत : फूट पड़ा और उसके फूटने से जो टुकड़े हुए उनमें से एक अति शूक्ष्म कण जो लगभग एक proton के बराबर का रहा होगा , उसमें फैलाव होनें लगा और फैलाव के फलस्वरुप Time- space का निर्माण शुरू हो गया और धीरे - धीरे सम्पूर्ण ब्रहमांड की सूचनाएं बनी , बन रहीं हैं और बनती रहेंगी / आप यदि विज्ञान में रुची रखते हो तो आप जानते भी होंगे की प्रकृति में सब अपनें प्रतिनिधी को पैदा कर रहे हैं जैसे पेड़ – पौधे , जीव – जंतु , पशु - पंछी एवं मनुष्य और गलेक्सियाँ भी तारों को जन्म दे रही हैं ; हमारी गलेक्सी श्वेत - गंगा लगभग 10 तारों को हर साल पैदा करती है / यहाँ प्रभु के राज्य में सब कु

टाइम स्पेस रहस्य

गीता ब्रह्माण्ड रहस्य एवं जीव उत्पत्ति यहाँ देखते हैं गीता के निम्न सूत्रों को 3.5 3.27 3.33 5.13 7.4 7.5 7.6 7.8 7.9 7.12 7.13 7.14, 7.15 8.16 8.17 8.18 8.19 820 8.21 8.22 9.8 10.21 13.6 13.7 13.13 1320 13.21 13.34 14.3 14.4 14.5 14.11 14.19 14.21 14.27 15.6 15.7 15.12 15.16 15.17 15.18 गीता के 10 अध्यायों से 41 सूत्रों को चुनकर यहाँ दे रहा हूँ . आप लोग इनको खूब पी सकते हैं / Prof. Albert Einstein कहते हैं … .... जब मैं गीता में ब्रह्माण्ड रहस्य को पढता हूँ कि परमात्मा ब्रह्माण्ड एवं जीवों का निर्माण कैसे किया ? तब मुझे संदेह रहित ऐसा ज्ञान मिलता है जैसा कहीं और नहीं देखता / अब आप को गीता के 41 सूत्रों का भाव मैं देने की कोशीश कर रहा हूँ और आप सबसे प्रार्थना है कि आप लोग इन सूत्रों को जरुर पढ़ें ------- परमात्मा सम्पूर्ण टाइम – स्पेस का नाभि केंद्र है ; परमात्मा से परमात्मा में तीन गुण माया का निर्माण करते और ये गुण परमात्मा से हैं लेकिन परमात्मा गुणातीत है /

अभ्यास योग एवं निर्वाण

गीता सूत्र – 6.15 युज्जन् एवं सदा आत्मानं योगी नियत – मानसः / शांतिम् निर्वाण परमां मत् - संस्थाम् अधिगच्छति // yujjan evam sada atmaanam yogi niyat – manasah / shantim nirvan paramaam mat – sansthaam adhugachchhati // इस सूत्र को स्वामी प्रभुपाद जी कुछ इस प्रकार से देखते हैं ----- इस प्रकार शरीर , मन तथा कर्म में निरंतर संयम का अभ्यास करते हुए संयमित मन वाले योगी को इस भौतिक अस्तित्व की समाप्ति पर भगवद्धाम की प्राप्ति होती है // Dr . S . Radhakrishanan says ------- The Yogin of subdued mind , ever keeping himself thus hormonized , attains to peace , the supreme nirvana , which abides in Me . इस सूत्र में निम्न बातें हैं ----- नियमित अभ्यास करना तन , इन्द्रियों एवं मन को प्रभु केंद्रित रखना परम शांति की प्राप्ति निर्वाण की प्राप्ति परम धाम की प्राप्ति अब देखते हैं इन बातों में क्या कोई आपसी सम्बन्ध दिखता है ? तन , इंद्रियों एवं मन को प्रभु केंद्रित रखनें वाला अभ्यास – योग में होता है जहां उसे परम शांति मिलती है जो निर्वाण का द्वार है और नि

क्या है विज्ञान और ज्ञान

गीता सूत्र – 6.8 ज्ञान - विज्ञान तृप्त आत्मा कूटस्थो विजित – इन्द्रियः युक्तः इति उच्यते योगी सम लोष्ट्र अश्म कांचन : // जिसकी इन्द्रियाँ उसके इशारे पर चलती हैं , वह ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण समभाव – योगी होता है A man with fully control over his senses , is a man having pure perceptions and he is a man of super wisdom . Such a man is said to be settled in Evenness – Yoga . गीता के इस सूत्र में निम्न बातें हैं -------- इंद्रिय नियोजन समभाव – योग ज्ञान – विज्ञान से परिपूर्ण गीता इन तीन तत्त्वों का समीकरण हमें दे दिया और बोला , अब आगे तेरे को अकेले यात्रा करनी है , तूं जिसे उचित समझे वैसे कर / संसार माया से माया में है , माया तीन गुणों का एक माध्यम है जिसका कोई अंत नहीं और जो समयाधीन भी नहीं और जो हर पल बदलता रहता है / जहां बदलाव है वहाँ गति भी होगी ही अतः यह हर पल गनिमान भी है लेकिन इसकी गति ऎसी है जैसे हमारे ह्रदय की धडकन / संसार में हमारे इंद्रियों को आकर्षित करनें के बिषय हैं ; विषय के प्रति उठा होश ही इंद्रिय नियोजन है और इंद्र